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अब पूर्ण और केवल पूर्ण समाधिस्थ ही होना है.........!!!!! - Geeta Dhara - My Path
अंतःकरण के कोने कोने में, अनगिनत वृत्तियों के हस्ताक्षरों के बीच कोई जाना पहचाना, आत्मस्थित फ़कीर प्रति पल विक्षिप्तों सा कुछ गुनगुनाता है जिसके घायल शब्दों ने अपना आधिपत्य कर रखा है मेरे एक एक श्वासों पर। इस संदेश के … Continue reading →
Mrityunjayanand