रंगों का खेल तो लंबे अवधि से चल रहा है। लेकिन ये रंग इतना कच्चा होता है की कुछ दिन तक भी नहीं टिक पाता। कुछ ही दिनों में हम भूल जाते हैं कि हमने कोई होली खेली थी। फिर वही पुराना जीवन और उसकी थकान भरी दिनचर्या। माया का अदृश्य रंग चढ़ा रहता है जो हमारी साँसों को बदरंग करता रहता है।
एक विचार है कि आपको इस होली में आध्यात्म का कुछ ऐसा रंग चढ़ा दूं जो आजीवन आपके साथ होली खेलता रहे। दोनों होली का आनंद मिलता रहे।
आपने पातंजलि के योग सूत्रों तथा भगवद्गीता के श्लोकों का अवश्य अध्ययन किया होगा और उनके अनुदेशों से संभवतः पूर्णतया तृप्त भी होंगे।
मैं इन सद्ग्रन्थों की आपको एक ऐसी व्याख्या से सराबोर करने के लिए उपहार स्वरूप भेंट करने का आग्रह कर रहा हूं जिनके शब्द क्रियात्मक तपश्चर्या के उन अनिवर्चनीय उपलब्धियों के तरफ विचारणीय होने को विवश कर देते हैं, जिन्हें उपलब्ध शब्दकोषों के शब्दों से वचनिय बनाना अत्यंत दुरुह कार्य है। आप अवश्य विभिन्न व्याख्यायों से तृप्त होंगे, किंतु इन व्याखायों संग होली खेल कर आप जन्म जन्मांतरों तक के लिए पूर्णतया संतृप्त हो जाएंगे और इसका रंग इतना पक्का होगा कि किसी जन्म में नहीं उतरेगा।
चलते रहना है। रंग बरसाते रहना है। ऐसी होली में सब कुछ रंग जाने के बाद भी सब कुछ रंग जाना शेष ही रह जाता है।
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आध्यात्मिक मस्ती वाली होली में विनम्र शुभेक्षाओं सहित,
~मृत्युञ्जयानन्द।