सोच खूबसूरत कैसे हो, एक विचारणीय प्रश्न ………???

सोच खूबसूरत कैसे हो, यह एक विचारणीय प्रश्न है क्योंकि मन की मलिनता सोच को भी मलिन कर देती है। अज्ञान से आच्छादित मन का संयमशील होना अति आवश्यक है। संयम के उत्थान से ही संस्कार परिष्कृत होते हैं जो मन को नियंत्रित करते हैं और मन की विशुद्धता के बिना समुचित दृष्टि का मिलना असंभव है। राग/द्वेष की भावना कभी संयमशील होने नहीं देती। स्वयं का आंकलन तो व्यक्ति को स्वयं ही करना अच्छा होगा क्योंकि उसके बिना न सोच खूबसूरत हो सकती है न ही सब कुछ अच्छा नज़र आ सकता है।

बिल्कुल सही है कि सोच खूबसूरत हो तो सब कुछ अच्छा नज़र आता है जिससे ये भी समझ आता है कि यदि सब कुछ अच्छा नज़र न आये तो समझना चाहिए कि स्वयं की सोच ही खूबसूरत नहीं है।

मानस का गायन है-

सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥
– उत्तरकांड* 7.117

” हे तात! यह अकथनीय कहानी सुनिए। यह समझते ही बनती है, कही नहीं जा सकती। जीव ईश्वर का अंश है। अतएव वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है॥”

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण का उदघोष है-

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।
***
सभी परमपिता परमात्मा के अंश हैं और एक ही पिता के अंश होने से न कोई सजातीय है ना ही विजातीय। सबके शरीर में स्थित आत्मा एक ही है। केवल स्वभाव, रहनी और विभिन्न योनोयों की विविधता हमें सजातीय अथवा विजातीय का बोध कराती रहती है।

जिस भी जीवात्मा ने इसका बोध कर स्वीकार कर लिया है उसके अंदर ईश्वरीय शक्ति सदैव प्रेम और करुणा का स्वतः संचार करती रहती है। उनका सामन्जस्य बैठ जाता है और मन में कोई शत्रुता नहीं रहती।

लेकिन जब हृदय का अहंकार इस तथ्य को नकार देता है, वहां समझ काम नहीं करती और तब सामन्जस्य का अभाव हो जाता है।

दुःखद स्थिति यह है कि आधुनिक तथाकथित सभ्य, प्रगतिशील और सुसंस्कृत मानव समाज इन तथ्यों को नकार कर सम्पूर्ण विश्व में छद्मशील आवरण ओढ़े केवल विषमता फैलाने में व्यस्त है और तत्वदर्शी संतों के अस्तित्व एवं वाणी को तोड़ मरोड़ कर अहंकारवश अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने ही अपना मूल लक्ष्य समझता है।

इन परिस्थितियों में परमपिता परमात्मा हमें दैवीय दृष्टि दें, केवल यही प्रार्थना है।

शुभकामनाओं सहित,

~मृत्युञ्जयानन्द।
🙏🙏🙏🙏🙏

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One Response to सोच खूबसूरत कैसे हो, एक विचारणीय प्रश्न ………???

  1. जी हां, मानव जीवन में सही पथ पर अग्रसर होने का यही एक मात्र उपाय है जैसा अपने कहा है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है कि जब तक हम अपने अंतर्मन की ओर नही देखेंगे तब तक ऐसे विचार नही आ सकते हैं। पर इसके लिए दृढ़ता चाहिए। और चाहिए ईश्वर का आशिर्वाद

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