सदाशिव,
तुम्हारी दया दृष्टि के संकेत मात्र से कृपा वृष्टि का एक हल्का सा झोंका,
दो चुटकी श्रीचरण रज घोले
आज कैसे बरस पड़ा मेरे अन्तःकरण के कोने कोने में?
आज मेरे मन के अतृप्ततता की अनवरत प्यास संतृप्तता की गोद में कैसे लुढ़क पड़ी है सजल नयनों केअश्रुपूर्ण रोने धोने में?
निःशब्द मुस्कान सहित मौन खड़े हो, कुछ कहोगे?
अच्छा….कुछ नहीं कहना है, तो
कुछ सुनोगे? सुनोगे न…,तो सुनो।
सुना है औघड़ दानी हो,
सर्व शंकाओं से उपराम, सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी विज्ञानी हो।
याचक हूं एक भिक्षा का….!!!
भले ही हो अंशतः, किंतु मुझे केवल वो गुर सिखला दो,
कि कैसे तुम भवसागर मंथन के
सर्वथा त्यक्त विष का विषपान स्वीकार कर, हलाहल को
कंठो के ऊपर ही रोककर,
मौन मुस्कानों में मस्त, अलमस्त, परमशान्ति समेटे मुस्कराते रहते हो, हे मेरे नीलकंठ?
😭😭😭
विनम्र शुभेक्षाओं सहित।
~ मृत्युञ्जयानन्द ।©
🙇🙇🙇🙇🙇