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दुर्गा का स्वभाव है कि शत्रुओं का नाश करती है।
यह दुर्गा प्रेम का प्रतीक ,श्रद्धा का प्रतीक है।
अब प्रेम श्रद्धा कहां होती है? किस दिशा में ले जाती है? क्या प्राप्त कराती हैं?
इसका स्वरूप नव दुर्गा के रूप में है।
हर मनुष्य मोह रूपी रात्रि में है।
जब हृदय में ईश्वर को पाने की इच्छा जागृत होती है, वहां से नवरात्रि आरंभ होता है।
पार्वती का जन्म हिमाचल के यहां, मैना के द्वारा हुआ।
हिमाचल कहते हैं हृदय को, मैना अर्थात मैं (अहंकार) ना हो।
ऐसी स्थिति में प्रेम की जागृति होती है।
इसलिए दुर्गा, पार्वती का एक नाम शैलपुत्री कहा गया है उसी दिन से।
श्वेत बैल ‘धर्म’ का प्रतीक है। साधक धर्म आचरण में लग जाता है, जब प्रेम जागृत होता है।
दूसरा नाम है ब्रह्मचारिणी, जिससे ब्रह्म की प्राप्ति होता है।
उस कर्म का आचरण होने लगता है।
आचरण जब होने लगता है तब तीसरा नाम चंद्रघंटा।
भजन से संयुक्त मन ही चंद्रमा है।
ऐसे मन मैं ईश्वरी नाद का संचार होने लगता है,
इसलिए इसे चंद्रघंटा कहते हैं।
उस ईश्वरी नाद के अनुशासन में चल के भजन होने लगता है,
तो मन कुशलतापूर्वक ईश्वर में स्थिति प्राप्त करने लगता है।
इसलिए चौथा नाम कूष्मांडा है।
जब कुशलतापूर्वक मन भगवान में लगने लगता है तो स्कंदमाता।
स्कंध कहते हैं कार्तिकेय को।
सांसारिक कर्म है, उसका त्याग होने लगता है।
इसलिए दुर्गा का एक नाम है स्कंदमाता।
जब संसारी कर्मों का त्याग होने लगता है तो ईश्वरी कर्तव्य की जननी कहलाती है।
इसलिए इनका छठा नाम है कात्यायनी।
कर्तव्य का घर, कर्तव्य की जननी, भक्त का परम कर्तव्य है देवी संपति, उसका आश्रय हो जाती है।
इसलिए कात्यायनी कहलाती है।
जब दैविक संपत्ति आ जाता है तो कालरात्रि ।
काल के लिए यह रात्रि के समान है।
रात्रि में मनुष्य को दिखता नहीं है।
उसी तरह अब काल ऐसे साधक को विचलित नहीं कर पाता।
कबीर कहते हैं कि काल की अखियां फूटी, सतगुरु अजब पिलाई बूटी।
आठवां नाम है महा गौरी।
गो कहते हैं मन सहित इंद्रियों को।
इसको जो काटने वाली है, संयत करने वाली है,
इंद्रियों का दमन करने वाली होने से इसको महागौरी कहते हैं।
जब इंद्रियां भली प्रकार संयमित हो जाती हैं,
उनका नाम है सिद्धिदात्री परम शांति,
परमात्मा उसका सिद्ध करा देती है।
इसलिए सिद्धिदात्री कहलाती है।
नवरात्र के बाद दशहरा आता है।
दसों इंद्रियों का संयम के साथ आगे भगवान का राज्याभिषेक होता है।
रामराज की स्थिति हृदय में आ जाती है, तब नवरात्रि समाप्त हो जाती है।
दुर्गा का विसर्जन कर देते हैं,
जब लक्ष्य प्राप्त हो गया तो साधन भजन भी शेष हो जाता है।।
(पूज्य गुरुदेव की आत्मानुभूति, जो उनके साधकों के हृदय देश में प्रवाहित है।)