सम्पूर्ण विश्व को भयंकर त्रासदियों के आक्रमण से मुक्त कराने के लिए
भगवद गीता के अध्याय 11 के श्लोकों के माध्यम से परमात्मा को मेरी हृदय से करबद्ध प्रार्थना ।
मैं पूरे विश्व के निवासियों को इस पुण्यमयी यात्रा में मेरा साथ देने के लिए प्रार्थना करता हूँ।
प्रतिदिन के प्रति छण में इस प्रार्थना को परमपिता परमात्मा को समर्पित करें।
भगवद गीता के अध्याय 11 के श्लोकों के माध्यम से परमात्मा को मेरी हृदय से करबद्ध प्रार्थना ।
मैं पूरे विश्व के निवासियों को इस पुण्यमयी यात्रा में मेरा साथ देने के लिए प्रार्थना करता हूँ।
प्रतिदिन के प्रति छण में इस प्रार्थना को परमपिता परमात्मा को समर्पित करें।
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वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः
पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥
आप ही वायु, यमराज, अग्नि, वरुण, चंद्रमा, तथा प्रजा के स्वामी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता हैं। आपको हज़ारों बार नमस्कार है। फिर भी बार बार नमस्कार है।
हे अत्यंत सामर्थ्य वाले! आपको आगे से और पीछे से भी नमस्कार हो; क्योंकि हे अत्यन्त पराक्रमशाली ! आप सब ओर से संसार को व्याप्त किये हुए हैं, इसलिए आप ही सर्वरूप और सवर्त्र हैं।
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्॥
आप चराचर के पिता हैं, इसलिए मैं अपने शरीर को भली प्रकार आपके चरणों में रखकर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिए प्रार्थना करता हूँ। है देव ! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रिय स्त्री के अपराधों को क्षमा करता है,
वैसे ही आप भी मेरे अपराधों को सहन करने योग्य हैं।
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा
भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देव रूपं
प्रसीद देवेश जगन्निवास॥
पहले न देखे हुए आप के इस रूप को देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ।
मेरा मन भय से व्याकुल हो रहा है। अतः है देव ! आप प्रसन्न हों।
हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप अपने उस रूप को ही मुझे दिखाइये।
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तं
इच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥
मै आपको वैसे ही अर्थात पहले की ही तरह शिर पर मुकुट धारण किये हुए,
हाथ में गदा और चक्र लिए हुए देखना चाहता हूँ।
इसलिए हे विश्वरूपे ! हे सहस्त्रबाहो ! आप अपने उसी चतुर्भुज स्वरूप में होइए।
~ श्रीमद्भगवद्गीता ~
साभार,
स्वामी अड़गड़ानंद जी कृत “यथार्थ गीता” ।
विनम्र शुभकामनाओं सहित,
~मृत्युञ्जयानन्द~