Author Archives: Mrityunjayanand

हृदय से करबद्ध प्रार्थना………!!!!

सम्पूर्ण विश्व को भयंकर त्रासदियों के आक्रमण से मुक्त कराने के लिए भगवद गीता के अध्याय 11 के श्लोकों के माध्यम से परमात्मा को मेरी हृदय से करबद्ध प्रार्थना । मैं पूरे विश्व के निवासियों को इस पुण्यमयी यात्रा में … Continue reading

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समाधियाँ…,!!!!

ॐ श्री सदगुरुदेव भगवान की जय।। *************************** अन्तराय विघ्नो से बचने के लिए अनेक उपाय बताये गए हैं जैसे- अभ्यास मे नाम या रूप मे से किसी भी एक मे जिसमे मन अधिक लगता हो, उसी मे अधिक देर तक … Continue reading

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साधना की पूर्ति के लिए उत्तरोत्तर आसक्ति का त्याग ही त्याग है, कृपया उत्तरोत्तर आसक्ति को समझाइए………!!!!।

एक भाविक द्वारा साधनात्मक प्रश्न। एक गृहस्थ के लिए अत्यंत भावनात्मक प्रश्न जिसकी स्पष्ट साधनात्मक व्याख्या उसके आध्यात्मिक जीवन के प्रारम्भ के लिए प्रेरणाश्रोत बन सकती है। इसके पहले की हम इस पर विचार प्रारम्भ करें, मैं पूज्य गुरुदेव की … Continue reading

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अन्तःकरण की वृत्ति के अनुरूप तप का क्या मतलब है……….?

************ प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण और हृदयस्पर्शी है। पहले हमें ये पता होना चाहिए की तप की आवश्यकता क्या है? तप से लाभ क्या है? एक भाविक का भावपूर्ण प्रश्न। योगेश्वर कृष्ण के अनुसार राग और विराग, दोनों से परे … Continue reading

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“Metaphysical Interpretation of “Dharma” as per vision of truly enlightened sage, knower of the true essence / तत्वदर्शी की दृष्टि से “धर्म” की आध्यात्मिक व्याख्या..!!!

According to Lord Krishn (2/16-29), the unreal never exists and the real is never without existence at any time. God alone is real, permanent, indestructible, changeless, and eternal, but he is beyond thought, imperceptible, and quite above the flutterings of … Continue reading

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“Dharm” As Defined In Ramcharit Manas………A Metaphysical Interpretation…..!!!

****************** According to Manas: ‘Dharamu na doosar satya samana/ Aagam nigam puran bakhana//’ (Manas, 2/94/5)—means there is no other Dharm like truth, which has been praised in the Ved, Scriptures and Purans. Spontaneous question is then what is the truth? … Continue reading

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