राम, एक अनुभवगम्य आध्यात्मिक विश्लेषण।
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Ram, a Perceptible Spiritual Interpretation.
जो आनंद के समुद्र हैं, सुख की राशि हैं, अपनी एक बूंद से त्रैलोक्य को सुपास प्रदान करने वाले हैं, वे राम हैं।अलौकिक अनुभूतियों के द्वारा, अंग स्पंदन के द्वारा, ध्यानजनित दृश्यों के द्वारा, स्वप्न के द्वारा, आकाशवाणी के द्वारा ईश्वरीय संकेत का नाम ‘राम’ है। यह राम के अनुभति की प्रारंभिक अवस्था है।
He who is the ocean of bliss, the source of joy, and with a single drop grants fulfillment to the three worlds, he is Ram. Through divine experiences, bodily vibrations, visions in meditation, dreams, and celestial messages, the name ‘Ram‘ serves as a sign of the divine. This is the initial stage of experiencing Ram.
राम बिना मुंह के बोलते हैं, ध्यान में बोलते हैं, हृदय एवं मस्तिष्क में बोलते है, मन में बोलते हैं, उस बोली का नाम राम है। वह बिना पैरों के चलते हैं, साधक के साथ साथ चलते हैं, उनका नाम राम है। वह विज्ञान, अनुभवी उपलब्धि ही राम है। ‘भव’ कहते हैं संसार को, और ‘अनु’ अतीत को कहते हैं अर्थात भव से बाहर करने वाली जागृति विशेष (अनुभव) का नाम ही राम है। वह है उस परमात्मा की आवाज़ का हृदय में प्रस्फुटन!
Ram speaks without a mouth; he speaks in meditation, in the heart and mind, in the inner consciousness—the name of that voice is Ram. He walks without feet, walks alongside the seeker, he’s Ram. Ram is that wisdom, that experiential realization. ‘Bhav‘ refers to the world, and ‘Anu‘ to the past; thus, the awakening that transcends the worldly realm is called Ram. He is the blossoming of the divine voice in the heart!
वह संदेश भीतर सुनाई पड़ता है, दिखाई पड़ता है। इष्ट जब साधक की आत्मा से अभिन्न होकर जागृत हो जायँ, हृदय में दिखाई पड़ने लगें, पथ प्रदर्शन करने लेंगें, वही राम हैं। वह स्वयं आनंद सिंधु और सुखराशि हैं। “सीकर ते त्रैलोक सुपासी”- एक बूंद भी जिन साधक को देता है, उसे त्रैलोक्य में सुपास दे देता है, निर्भय बना देता है। “सो सुख धाम राम अस नामा।” वह सुख का धाम है, उसका नाम राम है।”अखिल लोक दायक विश्रामा” संपुर्ण लोक को विश्राम देने वाला वही एक स्थल है। यही अनुभव चलते चलते जब ईश्वर के समीप की अवस्था आ जाती है तो अनुभवगम्य स्थिति ही मिल जाती है। यह अनुभव साधक भक्त को अपने में विलय कर लेता है। यही राम की पराकाष्ठा है।
This message is heard and seen within. When the beloved deity becomes one with the seeker’s soul, awakening in their heart, and begins to guide them, he’s Ram. He is the ocean of bliss and the source of joy. ‘Sikhar te trailok supasi’—with even a single drop, he grants fulfillment and fearlessness to the seeker across all three realms. ‘So sukh dham Ram as nama’—he is the abode of joy, and he’s Ram. ‘Akhil lok dayak vishrama’—he is the sole place that offers rest to the entire world. As this experience deepens and reaches closer to divinity, it becomes perceptible. This experience absorbs the devoted seeker into itself. This is the ultimate realization of Ram.
~स्वामी अड़गड़ानंद जी परमहंस।©
विनम्र शुभेक्षाओं सहित,
~मृत्युञ्जयानन्द।