“बार बार रघुबीर सँम्हारी।”
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Unceasingly Remembering Lord Ram!
पुण्यमयी रामनवमी पर महापुरुषों का विशेष संदेश!
(रामचरित मानस)
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Important message from great saints on the auspicious occasion of Ram Navami! (Ramcharitmanas)
यह ‘मानस’ है। मानस कहते हैं- मन को, अंत:करण को। ‘रामचरितमानस’ अर्थात् राम के वे चरित्र जो मन में प्रवाहित हैं। इसमें संसार ही समुद्र है, वैराग्यवान् पुरुष ही इसका पार पाता है।
This is ‘Manas.’ Manas refers to the mind, the inner consciousness. ‘Ramcharitmanas’ means those deeds of Lord Ram that flow within the mind. In this, the world of existence is like an ocean, and only the detached person can cross it.
निसिचरि एक सिन्धु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।।
जीव जन्तु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।।
(मानस, 5/2/1-2)
सिन्धु में एक निशिचरी रहती थी। ‘या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।’ (गीता, 2/69)- इस जगतरूपी निशा में, चलने और चलानेवाली है, इसीलिए इसका नाम निशिचरी है। यह भवसिंधु में रहती है, और समुद्र में जिसकी परछाईं पड़ती है उसे दबोच लेती है, फिर वह नीचे गिर जाता है।
There was a demoness in the ocean (force in world). ‘In that night of ignorance, the disciplined one remains awake.’ (Bhagavad Gita, 2/69) – In this world-like night, there is movement and a force that drives it, which is why it is called a ‘demoness.’ She resides in the ocean of existence, and whoever’s shadow falls upon the ocean gets caught by her, after which they fall down.
गहइ छाँह सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई।।
(मानस, 5/2/3)
वह छाया को पकड़ लेती थी, जिससे जीव-जंतु उड़ नहीं पाते थे, उनकी गति कुंठित हो जाती थी। इसी प्रकार गगनचरों को, आकाश में उड़नेवालों को खा लिया करती थी।
She would catch hold of the shadow, causing creatures to be unable to fly; their movement would be obstructed. In the same way, she used to consume the sky-dwellers, those who flew in the sky.
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तरतहिं चीन्हा।।
(मानस, 5/2/4)
वही छल उसने हनुमान के साथ किया। उसके कपटाचरण को हनुमान ने तुरंत पहचान लिया, फिर तो-
She used the same deceit with Hanuman. Hanuman immediately recognized her deceitful actions, and then—
ताहि मारि मारूतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा।।
(मानस, 5/2/5)
तुरंत उसे मारकर हनुमान समुद्र पार कर गए। वैराग्य ही हनुमान है- मान और सम्मान का हनन करनेवाला है, इसलिए वैराग्यरूपी हनुमान। पक्षी उड़ता तो आकाश में है किंतु जमीन का सहारा लेता है। केवल वैराग्यवान पुरुष ही इस संसार-सिन्धु के ऊपर उड़ान भरता है। वह भवसिन्धु से ऊपर उठना चाहता है, उठता भी है और क्रमश: उत्थान करते-करते परमतत्त्व परमात्मा में, भव से परे सत्ता में विलय पा जाता है।
Hanuman immediately struck her down and crossed the ocean. Detachment itself is Hanuman—one who destroys pride and honor, which is why Hanuman is symbolized by detachment. A bird flies in the sky but still takes support from the ground. Only the detached person soars above the ocean of existence. He desires to rise above the ocean of worldly life, and as he ascends, gradually, through that elevation, he merges with the supreme truth, the ultimate reality, transcending existence itself.
‘निसिचरि एक सिन्धु महुँ रहई ।’- दूसरों की इच्छाशक्ति ही निशिचरी है। कोई अच्छा साधक अपनी साधना में अग्रसर होता जाता है तो दूसरे लोग मायिक विचारों को लेकर उससे टकराने लगते हैं। महिलाओं के लिए पुरुष या पुरुषों के लिए महिलायें ऐसा सोचने लगती हैं कि, “बाबा तो बड़े अच्छे हैं। न जाने कब से कटिबद्ध हैं, ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं कितने अच्छे हैं। हमारे संगी साथी रहे होते तो कितना अच्छा होता।”- बस विषय की भयंकर वेदना लेकर वह चिंतन करेंगी। तहाँ उनका चिंतन ज्यों-का-त्यों वैराग्यवान् पुरुष के शान्त चित्त से टकरायेगा; क्योंकि चित्त तो सबका एक ही है। साधक यह निर्णय नहीं कर पाता कि ऐसा चिंतन आया कहाँ से। तुरंत उसी चिंतन से वह आक्रांत हो जाता है। वही भाव पनपते-पनपते कुछ ही समय में साधक को इसी संसाररूपी समुद्र में गिरा देता है। संसार ही समुद्र है। जिसमें विषयरूपी जल भरा है; किंतु–
When a seeker starts traversing on the path, ‘there is a demoness dwelling in the ocean.’ The desires of others is the demoness. When a good seeker progresses in their practice, others with worldly desires begin to clash with them. Women may think of men, or men may think of women, and they start to feel, ‘The master is so good. He has been devoted for so long, practicing celibacy, how wonderful he is. If only we had companions like that.’ With such intense longing, they begin to ponder. Thus when their thoughts clash with a peaceful mind of the detached person because all minds are essentially the same. The seeker cannot discern where such thoughts come from. Immediately, they are overwhelmed by these thoughts. As these feelings grow, in no time they pull the seeker down into the ocean of this world. The world is indeed like an ocean, filled with the waters of desires. However—
बार बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी।।
(मानस, 5/मंगलाचरण, चौ० 6)
जो निरंतर भगवान का स्मरण करता रहता है, जिसमें इष्ट का बल है, जो इष्ट के इशारों पर चलनेवाला है, उस विरक्त पुरुष में तुरंत इस छल को पहचानने की क्षमता होगी कि हमारे चिंतन तो गंदे थे ही नहीं, फिर ये कहाँ से आ रहे हैं? जिसके अंदर इस चिंतन के विभाजन के क्षमता होती है, अपने और पराये चिंतन को जो पहचानने लगता है, उसके ऊपर से इस संकल्पजनित संगदोष का प्रभाव टल जाता है। साधक जान जाता है कि ऐसा बुरा संकल्प कौन कर रहा है? जब चिंतन हमारा है ही नहीं, किसी अन्य की मन:स्थिति टकरा रही है। दुनिया में सब विषयी ही तो हैं, वे कुछ भी सोच सकते हैं; क्योंकि वे उसी क्षेत्र में खड़े हैं, उसी वायुमंडल में हैं और वे करेंगे भी क्या? अतः उन्हें माँ अथवा बहन कह दें, तो फिर संकल्पों की लहर जो साधक से टकरा रही थी, समाप्त हो जाती है। उनकी भाव-भंगिमा बदल जाती है।
संसाररूपी सिंधु में विषय-रस से ओत-प्रोत दूसरों की इच्छाशक्ति साधक के चित्त को पकड़ती है। यही परछाईं का पकड़ना है। जब साधक का चित्त विषय-चिंतन में आवृत्त होने लगता है तो वे संस्कार बन जाते हैं। परिणामत: वह श्रेय साधन से गिर जाता है; किंतु जिस साधक में इष्ट का बल है, अनुभवी आधार पर संकल्पों के विभाजन के क्षमता है, वह इसको सहज ही पार करके आगे निकल जाता है। साधक जानता है कि दुनिया प्राय: वही चिंतन करेगी जिसमें वह लिप्त है। जिसे सर्प ने काटा है, उसे लहर तो आयेगी ही। साधक भी तो पहले दुनिया में रहकर यही सब चिंतन करता था। जहाँ संकल्पों के विभाजन के क्षमता आयी, सांसारिक संकल्पों की लहर साधक के मन से विलग हो जाती है; किंतु यह क्षमता इष्ट को हृदय में सतत सँजोनेवाले साधक में प्रभु की कृपा द्वारा ही आती है। इष्ट द्वारा प्रदत्त अनुभव के बल पर ही साधक ऐसा कर पाता है।
ताहि मारि मारूतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।।
अतः भजन करो। वे दया के सागर हैं। तुम भी पाओगे।
One who constantly remembers the Lord, who has the strength of their chosen deity and follows their guidance, will immediately have the ability to recognize the deception, understanding that their thoughts were never impure—so where are these foreign thoughts coming from? The one who can discern between their own thoughts and those of others will be able to ward off the influence of these unwanted thoughts. The seeker realizes that these bad thoughts are not his own; they are coming from another’s mindset. In this world, everyone is filled with desires, and they can think whatever they like, because they are in the same environment, the same atmosphere. What can they do? So, when the seeker calls them ‘mother’ or ‘sister,’ the wave of conflicting thoughts that were disturbing the seeker’s mind dissipates, and their mood shifts.
In the ocean-like world, the desires of others, full of worldly attachment, grab hold of the seeker’s mind. This is the same as catching the shadow. When the seeker’s mind becomes entangled in worldly thoughts, they create karmic impressions. As a result, they fall away from their spiritual practice. However, a seeker who has the strength of their deity and the ability to divide their thoughts based on their experience can easily overcome these distractions and continue forward. The seeker knows that the world will mostly think along the lines of whatever they are involved in. Just as someone who has been bitten by a snake will feel the effects, the seeker, having lived in the world before, once had similar thoughts. But when the seeker gains the ability to divide their thoughts, the worldly thoughts separate from their mind. This ability comes only through the grace of the Lord, by constantly keeping the deity in the heart. It is through the strength of the experiences granted by the Lord that the seeker is able to do this.
Thus, after overcoming the obstacle, the great warrior son of the wind, Hanuman, crossed the ocean with a determined mind.
Therefore, keep chanting. He is the ocean of compassion, and you too will receive his blessings.
~स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी परमहंस।©
विनयावनत,
~मृत्युञ्जयानन्द।