राम राम राम जीह जौलौं तू न जपिहै……!!!!!

राम राम राम जीह जौलौं तू न जपिहै ।
तौलौं, तू कहूँ जाय, तिहूँ ताप तपिहैं ॥१॥

 

सुरसरि – तीर बिनु नीर दुख पाइहै ।
सुरतरु तरे तोहि दारिद सताइहै ॥२॥

 

जागत, बागत, सपने न सुख सोइहै ।
जनम जनम, जुग जुग जग रोइ है ॥३॥

 

छूटिबे के जतन बिसेष बाँधो जायगो ।
ह्वैहै बिष भोजन जो सुधा – सानि खायगो ॥४॥

 

तुलसी तिलोक, तिहूँ काल तो से दीनको ।
रामनाम ही की गति जैसे जल मीनको ॥५॥

 

भावार्थः– हे जीव ! जबतक तू जीभ से रामनाम नहीं जपेगा, तब तक तू कहीं भी जा – तीनों तापों से जलता ही रहेगा ॥१॥
गंगाजी के तीरपर जानेपर भी तू पानी बिना तरसकर दुःखी होगा, कल्पवृक्षके नीचे भी तुझे दरिद्रता सताती रहेगी ॥२॥
जागते, सोते और सपने में तुझे कहीं भी सुख नहीं मिलेगा, इस संसारमें जन्म – जन्म और युग – युगमें तुझे रोना ही पड़ेगा ॥३॥
जितने ही छूटनेके ( दूसरे ) उपाय करेगा ( रामनामविमुख होनेके कारण ) उतना ही और कसकर बँधता जायगा; अमृतमय भोजन भी तेरे लिये विषके समान हो जायगा ॥४॥
हे तुलसी ! तुझ – से दीन को तीनों लोकों और तीनों कालों में एक श्री रामनाम का वैसे ही भरोसा है जैसे मछली को जलका ॥५॥

 

विनय पत्रिका,
~पूज्य संत तुलसीदास जी।

 

अनन्त श्रीविभूषित, योगिराज, युग पितामह परम पूज्य दादा गुरुदेव परमहंस श्री स्वामी परमानंद जी महाराज का महाप्रयाण के पूर्व अंतिम उपदेश यही था।

 

Meaning in English: O soul! Until you chant the name of Lord Ram with your tongue, no matter where you go, you will continue to suffer from the three types of afflictions.
Even if you go to the banks of the Ganges, you will still suffer from thirst and sorrow without water. Even under the wish-fulfilling tree (Kalpavriksha), poverty will continue to trouble you.
Whether awake, asleep, or dreaming, you will not find peace anywhere, and in this world, you will have to cry through births and ages.
The more you try other means of liberation (while neglecting the name of Ram), the more tightly you will be bound; even food that is like nectar will turn to poison for you.
O Tulsidas! In all three worlds and throughout all times, the only hope for one as destitute as you is the name of Lord Ram, just as water is for a fish.

Vinay Patrika, ~Revered Saint Tulsidas Ji.

This was also the final teaching given by the greatly revered, adorned with infinite glory, Yogiraj, most revered Guru Paramhans Swami Paramanand Ji Maharaj, before his great departure.

 

विनम्र शुभेक्षाओं सहित,
~मृत्युञ्जयानन्द।
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